बयाना की शान-अकबर की झझरीअद्भुत नक्काशी, अनोखी जालियाँ और अनदेखी बदहाली

बयाना. राजस्थान के ऐतिहासिक नगर बयाना में स्थित अकबर की झझरी मुगलकालीन कला, स्थापत्य और शिल्पकौशल का बेजोड़ नमूना मानी जाती है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित यह स्मारक दूर से देखने पर जितना भव्य लगता है, उतना ही नजदीक जाकर इसकी नक्काशी और जालियों की बारीकी मन को मोह लेती है। इसकी खासियत यह है कि हर जाली का डिजाइन अलग है, लेकिन दूर से सभी बिल्कुल एक-सी नजर आती हैं। यह उस दौर के शिल्पकारों की कला और गणितीय कौशल का अद्भुत प्रमाण माना जाता है।

निर्माणकाल और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
अकबर की झझरी का निर्माण भारत में तीसरे मुगल शासक अकबर के शासनकाल में करवाया गया माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार यह स्मारक या तो अकबर के किसी विश्वसनीय सेनापति के सम्मान में बनाई गई झझरी है, या फिर अकबर द्वारा बयाना क्षेत्र में किए गए प्रवास-अभियान की स्मृति स्वरूप निर्मित की गई संरचना है।
बयाना मुगल शासन के प्रारंभिक काल में एक महत्वपूर्ण सैन्य व व्यापारिक केंद्र था। यहां गुजरने वाला मार्ग आगरा, धौलपुर और करौली क्षेत्रों को जोड़ता था, इस कारण अकबर के समय में भी इसका विशेष महत्व था। इसी वजह से यहां खूबसूरत स्मारकों और छतरियों के निर्माण को बढ़ावा दिया गया।

अनोखी जालियाँ-कला का अनुपम नमूना :
अकबर की झझरी को विशेष बनाती हैं इसकी दुर्लभ पत्थर की जालियाँ, जिनमें ज्यामितीय आकृतियाँ, पुष्प डिजाइन, और उस समय प्रचलित इस्लामिक-हिंदू कला का मिश्रण दिखाई देता है।

हर जाली अलग, लेकिन दृश्य प्रभाव समान :
पत्थर को अंदर से बाहर तक उकेरकर बनाया गया डिजाइन के साथ कहीं भी जोड़ या चिपकाने का कार्य नहीं किया गया है। जालियों से छनकर आने वाली रोशनी स्मारक के अंदर जादुई आभा पैदा करती है। इस तरह की जाली कारीगरी पूरे भारत में बहुत कम स्थानों पर देखने को मिलती है, इसलिए इतिहास में रूचि रखने वाले पर्यटक इसकी तकनीक को समझने के लिए विशेष रुचि दिखाते हैं।

अद्भुत नक्काशी, मुगल शिल्प का सर्वोत्तम उदाहरण :
झझरी के स्तंभों और छत पर ऐसी बारीक नक्काशी की गई है, जिसे देखकर आज के आधुनिक औज़ारों के दौर में भी लोग दंग रह जाते हैं। स्तंभों पर बेल-बूटों और पुष्पों की उकेरन, छत के नीचे लटकते मिनिएचर घुँघरू जैसे अलंकरण, मेहराबों पर हिंदू-मुगल मिश्रित कारीगरी इसको सम्मोहित कर देने वाला स्वरूप प्रदान करते हैं। यह संपूर्ण संरचना कहीं भी असंतुलित नहीं, एकदम सममित बनी हुयी है। इन कारणों से यह झझरी बयाना का सबसे प्रमुख दर्शनीय स्थल बन चुकी है।

बदहाली-झझरी के सामने कीचड़ ने छीनी ऐतिहासिक चमक :
अकबर की झझरी को देखने आने वाले पर्यटकों की सबसे बड़ी शिकायत इसकी जर्जर पहुँच मार्ग को लेकर है। झझरी के सामने के रास्ते पर महीनों से कीचड़ जमा है। बरसात में यह मार्ग पूरी तरह दलदल में तब्दील हो जाता है। स्थानीय लोग भी इस खस्ता हाल मार्ग से परेशान हैं। पर्यटक आते-आते ही लौट जाते हैं।
फोटो खिंचवाने और घूमने का उत्साह कीचड़ की दुर्गंध में फीका पड़ जाता है।
इतिहास की अनमोल धरोहर होने के बावजूद, यह स्मारक अपनी आभा खोता जा रहा है, जो अत्यंत चिंता का विषय है।

एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के संरक्षण में है स्मारक :
अकबर की झझरी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक है। एएसआई ने कई बार संरचना की मरम्मत और संरक्षण कार्य करवाए भी हैं, लेकिन पहुँच मार्ग और आसपास की स्वच्छता स्थानीय प्रशासन के दायरे में आती है, जिस पर लगातार लापरवाही बनी हुई है। पर्यटक और स्थानीय लोग वर्षों से मांग कर रहे हैं किः
स्मारक तक जाने वाला मार्ग पक्का हो, कीचड़ व पानी निकासी की स्थायी व्यवस्था बने, परिसर के आसपास नियमित सफाई हो एवं पर्यटन सूचना बोर्ड लगाए जाएँ।

कहानी और लोकमान्यता
स्थानीय लोगों के बीच यह मान्यता प्रचलित है कि इस झझरी का निर्माण अकबर ने बयाना में आयोजित एक विशेष सभा की स्मृति में कराया था। कुछ का कहना है कि यहां कभी अकबर का डेरा भी लगा था और उन्होंने क्षेत्र में प्रशासनिक बैठकें भी की थीं। हालांकि इतिहास में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन संरचना की शैली और काल इसे अकबरकालीन ही सिद्ध करती है।

संरक्षण जरूरी, वरना खो जाएगी धरोहर की चमक
अकबर की झझरी सिर्फ बयाना की शान नहीं, बल्कि मुगलकालीन अद्भुत कला का जीता-जागता उदाहरण है। लेकिन उपेक्षा और लापरवाही के चलते इसकी ऐतिहासिक चमक कमजोर पड़ने लगी है। यदि समय रहते सड़क, सफाई और बेसिक सुविधाओं की मरम्मत नहीं हुई, तो यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए सिर्फ तस्वीरों में ही बच पाएगी।

एएसआई अधिकारी बोले –
झझरी स्मारक पर रख्ररखाव बेहतर स्थिति का है। रास्ते में जलभराव की समस्या को लेकर स्थानीय प्रशासन से पत्राचार कर समाधान कराया जायेगा। झझरी समेत सभी संरक्षित स्मारकों के संरक्षण और मूल स्वरूप में पुनर्बहाली के लिए विस्तृत प्रस्ताव उच्च स्तर पर भेज दिए गए हैं। स्वीकृतियां प्राप्त होते ही कार्यों की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी और स्मारकों को उनके प्राचीन रूप में पुनर्स्थापित कराया जाएगा।
……..सौरभ मीना, संरक्षण सहायक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, उप मण्डल कार्यालय, भरतपुर

2 thoughts on “बयाना की शान-अकबर की झझरीअद्भुत नक्काशी, अनोखी जालियाँ और अनदेखी बदहाली

  1. आदरणीय मुकुट भारद्वाज जी द्वारा बहुत ही सुंदर जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार।

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