कौनसा धर्म श्रेष्ठ है?

ईश्वर का एक ही धर्म है सत्य सनातन अर्थात वह सत्य है और कभी न मिटने वाला है। धर्म मनुष्यों के हैं। धर्म धर् धातु से बना जिसमें सम् उपसर्ग जुड़ा है जिसका मतलब धारण करना होता है।

इसका सीधा भावार्थ हैं कि आपका समुदाय किन विचारों को धारण करता है? किस मार्ग पर आप और आपके अनुयायी चलते है? आपकी संस्कृति और सभ्यता क्या है?“आपके सिद्धांत संपूर्ण प्रकृति एवं मानव जाति को कल्याण कारक है या विनाशक यही धारणा आपके धर्मों का श्रेष्ठ व निम्न बनाती है”।

आहार निद्रा भय मैथुनं चसामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।

धर्मो हि तेषामधिको विशेष:धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

चाणक्यनीति के अनुसार आहार, निद्रा, भय और मैथुन – ये मनुष्य और पशु में समान हैं। इन्सान में विशेष केवल धर्म है, अर्थात् बिना धर्म के व्यक्ति पशुतुल्य है।

https://youtu.be/k-4Rar-IxAE

मेरे मतानुसार वह उपासना जिससे मानव जाति का कल्याण हो, अन्य प्राणियों के प्रति दयाभाव हो एवं प्राकृति रक्षण हो समाज का वैनुष्यता,द्वेष इर्षा घृणा ,हिंसा एवं अन्य पापाचारों से मुक्त मार्ग हो वही श्रेष्ठ है।सनातन धर्म सभी गुणों से ओतप्रोत है।

हमारे शास्त्रों में लिखा है – अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्!!उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् !

यह मेरा है, वह पराया है, ऐसे छोटें विचार के व्यक्ति करते हैं! उच्च चरित्र वाले लोग समस्त संसार को ही परिवार मानते हैं।ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥लोकक्षेम मंत्र |

सम्पूर्ण विश्व के कल्याण का मंत्र हिन्दी भावार्थ:सभी सुखी होवें , सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो ।

मगर दुर्भाग्य है मानव जाति के कल्याण कारक और मोक्ष कारक धर्म के प्रति विधर्मियों की सोच! सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है की इस महान हृदय स्थल वाले सनातन को छोड़कर हमारे लोग दिग्भ्रमित हो कर छोटी सोच वालों के भ्रम जाल में फंस जाते हैं और धर्म परिवर्तन कर लेते हैं सगुण और निर्गुण भक्ति में श्रेष्ठ भक्ति भगवान श्री कृष्ण ने गीता के बारहवें अध्याय के भक्ति योग में अर्जुन के पूछने पर उपदेश दिया कि भगवान जो भक्त निरंतर अन्नय प्रेम से पूर्वोक्त प्रकार से निरंतर आप सगुण परमेश्वर को भजता है और दूसरा जो आप अविनाशी सच्चिदानंद निराकार ब्रह्म को अतिश्रेष्ठ भाव से भजता है उन दोनों में श्रेष्ठ कौन है?

श्री भगवान बोले मन को मुझ में एकाग्र करके निरंतर मेरे ध्यान में रत भक्तजन जो अतिश्रेष्ठ श्रद्धा भाव से युक्त होकर मुझ सगुण रुप परमेश्वर को भजते है वे योगियों में अति उत्तम योगी मुझे मान्य है पर जो पुरुष सारी इंद्रियों को पूर्णता अपने वश में करके मन बुद्धि से परे सर्वव्यापी अकथनीय स्वरूप वाले सदा एकरस रहने वाले नृत्य अचल निराकारी, अविनाशी सच्चिदानंद ब्रह्म को निरंतर एक भाव से ध्यान करते हुए भजते है ऐसे संपूर्ण भूतों के हित में लीन और सब में समान भाव वाले योगी मुझको ही प्राप्त होते हैं उस निराकार ब्रह्म में आसक्त चित्त वाले पुरुषों की साधना में विशेष परिश्रम निहित है क्योंकि अव्यक्त विषयक गति प्राप्त करना देहधारियों को कष्टप्रद है।परंतु जो भक्तजन मेरे परायण रहकर संपूर्ण कर्मों को मुझे ही अर्पण करके मुझ सगुण रूप परमेश्वर का निरंतर चिंतन करते हुए अनन्य भक्ति योग से भजते हैं उन मुझ में चित्त लगाए हुए भक्तों को मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार समुद्र से उद्धार करता हूँ। अतः हे अर्जुन तू अपने मन बुद्धि और चित्त को मझ में लगा तत्पश्चात तू मुझ में निवास करेगा इसमें कोई संशय नहीं है। यदि तू मन को मुझ में स्थापित करने में असमर्थ है तो अभ्यास रूप भगवान के नाम का जाप, कीर्तन, मनन आदि क्रियाएं बार बार कर ऐसा करने से तू मुझे प्राप्त होगा अतः यह स्पष्ट है निराकार और साकार में ईश्वर प्राप्ति का श्रेष्ठ मार्ग साकार हैं निराकार बहुत कष्ट प्रद एवं कठिन मार्ग है। मगर मानवता से ओतप्रेत भक्तजन सगुण हो या निर्गुण दोनों ही ।

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